तुम सामने क्या आये नज़र जीवन व्यथा तर्कहीन हो गया। तुम सामने क्या आये नज़र जीवन व्यथा तर्कहीन हो गया।
चुपचाप खामोश और वह फिर तत्पर हो जाती है एक और चुभन सहने के लिए। चुपचाप खामोश और वह फिर तत्पर हो जाती है एक और चुभन सहने के लिए।
प्रेम प्राकृतिक है सहज है जैसे आकार में निराकार स्वाभाविक अभ्यास है प्रेम प्राकृतिक है सहज है जैसे आकार में निराकार स्वाभाविक अभ्यास है
भगवान क्यों हो रहा सृष्टि पर ये सब फेर। भगवान क्यों हो रहा सृष्टि पर ये सब फेर।
और उनके साथ खत्म हो रहा था जंगल का अस्तित्व धरती कि देह फि... और उनके साथ खत्म हो रहा था जंगल का अस्तित्व ...
अहम भाव से बाहर नहीं आ पाती स्वंय में स्व को बांधकर स्वंय को खोज नहीं पाती अहम भाव से बाहर नहीं आ पाती स्वंय में स्व को बांधकर स्वंय को खोज नहीं पाती